Thursday, September 25, 2014

पाली भाषा की कक्षायें एवं ब्राह्मणी मिलावट

पाली भाषा की कक्षायें एवं ब्राह्मणी मिलावट

            पिछले कुछ वर्षों में बौद्ध धम्म के प्रचार के कारण और उसकी अध्यात्मिक मिठास के कारण काफी बौद्ध उपासक पाली भाषा सिखने की ओर आकर्षित होने लगे है. यह आकर्षण किसी व्यक्ति के आव्हानात्मक प्रचार या लेखों के कारण बढ़ा है, ऐसा मुझे नहीं लगता. वैसे भी पाली भाषा का आकर्षण बौद्धों के लिए स्वाभाविक ही है. विपस्सना, नित्य बुद्ध वंदना, विहारों को नियमित भेंट, लेणियों का इतिहास, लेणियों की सैर और उसके शिल्पों एवं कलाकृतियों की मनमोहकता का अनुभव बौद्धों को पाली भाषा की ओर आकर्षित  कर रहा है. बौद्धों के अलावा पाली भाषा सिखने या अभ्यास की चाह या जरुरत महसूस करने वाला दूसरा वर्ग याने ब्राहमण है. वर्तमान में पाली भाषा मुंबई, औरंगाबाद, नागपुर, और पुणे विद्यापीठ से सिखाई जाती है. शुरुवात में ब्राह्मणों ने ही पाली भाषा सिखाने का कार्य हात में लिया था. तद्पश्चात उन्होंने आर एस एस में काम करने बाले बहुजन लोगों को पाली सिखाने के लिए तैयार किया. आर एस एस में आज भी कम संख्या में ही सही लेकिन कुछ बौद्ध भी है. ऐसे बहुजनों के लिए ब्राह्मण अत्युच्च आदर स्थल पर है, तो आम्बेडकरी बौद्धों से उन्हें घृणा है.    

            पाली भाषा की कक्षाए महाराष्ट्र में सभी ओर चलाये जा रहे है. ऐसा देखा जा रहा है कि वहां के कुछ शिक्षक पाली सिखाते हुए चमत्कारी बुद्ध पढ़ा रहे है. इतना ही नहीं तो whatsup पर चर्चा के दौरान ये पाली पढ़ाने वाले मंडली धम्म में विचारवंत लोगों के साथ मगरुरी कर  उन्हें 'पहले पाली सीखिए, फिर होशियारी दिखाईये' ऐसी दादागिरी की भाषा प्रयोग में लाते  है. पाली पढ़ाने वाली मंडली पेपर में प्रसिद्धि करते वक्त ऐसे विचार प्रस्तुत करते है कि पाली सीखे बगैर बौद्ध धम्म और जीवन के तंत्र नहीं जाने जा सकते. वैसे कई शिक्षक पूना से तयार हुए है ऐसा ज्ञात हुआ है. इन लोगों को यह समजना जरुरी है कि भाषा की मर्यादा आज के कम्पुटर युग में शून्य हो चुकी है. कोई भी विशिष्ट भाषा जानने से मनुष्य सर्वज्ञानी नहीं हो सकता. चायना के लोग आज भी बुद्ध तत्वों को चीनी भाषा में पढ़ते है. वही अवस्था जापान, श्रीलंका, बर्मा या अन्य सभी देशों की है. भाषा की श्रेष्ठता पालने वाले लोग मानवता वादी या बुद्ध अनुयायी हो ही नहीं सकते. सम्राट अशोक ने  बेबोलियन प्रदेशो में स्थानिक आर्मेनियन और अफगान प्रदेशों में अफगानी भाषा में बुद्ध तत्वों को उत्कीर्ण करवाया. बाबासाहेब ने भी 'बुद्ध और उनका धम्म' और अन्य ग्रंथ भी दुनिया में प्रचलित अंग्रेजी भाषा में ही लिखे. उन्होंने महाराष्ट्र के लोगों के लिए मराठी या भारतियों के लिए हिंदी में नहीं लिखे. लेकिन बाबासाहेब के ग्रंथ लगभग सभी भाषा में उपलब्ध है. इसकारण अंग्रेजी पढ़े बगैर बाबासाहेब के विचार लोगों को समज नहीं आयेंगे, ऐसा कहना अनुचित होगा. गैलेलियो के सिदधांत समजने के लिए रोमन या लेटिन भाषा अवगत होनी चाहिए ऐसा अगर कोई कहेगा तो उसे मूर्खों में गिना जाएगा. उसी प्रकार जीसस के सिद्धांत समजने के लिए हिब्रू भाषा या कुरान समजने के लिए अरबी भाषा आनी चाहिए,  ऐसा कहने वाला मुर्ख ही कहलायेगा. बाबासाहब ने सभी धर्मग्रंथ अंग्रेजी में ही पढ़े, इसका अर्थ बाबासाहेब को कोई भी धर्म ठीक से समज नहीं आया, ऐसा कोई कह सकता है क्या? संक्षिप्त में इतना ही कहना है कि कोई भी भाषा श्रेष्ठ या कनिष्ठ नहीं. भाषा मात्र संवाद का माध्यम है. भाषा की श्रेष्ठता या कनिष्ठता विशद करनेवाले, बौद्ध धम्म विरोधी ब्राह्मण अथवा ब्राह्मणवादी लोग है. अगर ये बातें तर्कसंगत है, तब जो व्यक्ति पाली भाषा सिखा नहीं है, वह बौद्ध धर्म नहीं समज सकता, ऐसा कहने वालों को क्या समजा जाये?


            वास्तव में पाली भाषा बहुत ही सहज और मराठी के अत्यंत नजदीक है. व्याकरण का भाग छोड़ दिया जाय तो कई शब्द मराठी भाषा में पाए जाते है. उसी प्रकार भारत की सभी भाषाओँ में पाली भाषा के शब्द पाए जाते है. तमिल लिपि या पंजाबी भाषा अथवा मलयालम भी पाली भाषा के नजदीक पायी जाती है. पाली भाषा सिखने की किताबे अब बाजार में उपलब्ध है और अभ्यास करने पर पाली सहजता से सीखी जा सकती है. लेकिन वह पाली भाषा प्रतिदिन या रोजमर्रा के बातचीत में प्रयोग ना किये जाने के कारण किसी वाक्य को तुरंत अन्य भाषा से पाली में अनुवाद करना कठिन होगा, लेकिन एक बार पाली भाषा सिख लेने के बाद, पाली भाषा का  मराठी (अथवा अन्य किसी भी प्रांतीय) भाषा में अनुवाद करना सहज होगा. अन्य भाषाओं की शिक्षा के बारे में यह अनुभव अलग है. यदि कोई हिंदी भाषी व्यक्ति मलयालम सिखने के बाद प्रतिदिन प्रयोग नहीं करता है तो वह भाषा तो भूल ही जायेगा, शब्द भी भूल जायेगा. लेकिन पाली भाषा भारत की सभी भाषाओं को जननी होने के कारण एक बार पाली भाषा सिखने के बाद तुरंत भुलाना असंभव है.

            पाली भाषा में औ, त्र, अ:, श, ष, उड़ता र, श्र ये अक्षर नहीं है. पाली भाषा में से संस्कृत भाषा निर्माण करते समय ब्राहमणों ने ये अक्षर जोड़े है. और उसी प्रकार पाली लिपि पर से ही ब्राह्मणों ने 'देवनागरी' लिपि तयार की है. संस्कृत भाषा की लिपि भी 'देवनागरी' ही है, जो इस सत्य का पक्का सबुत है कि पाली भाषा पर से ही संस्कृत निर्माण की गयी है. पाली लिपि को ब्राह्मणों ने ब्राह्मी लिपि नाम दिया ताकि लिपि पर ब्राह्मणों का वर्चस्व अबाधित रहे. यह देखा गया है की पाली सिखाने वाले पाली लिपि को 'ब्राह्मी' लिपि कहने पर जोरों का दबाव डालते है. उसका क्या कारण हो सकता है?

            आओ पाली भाषा को समजते है. 'सब्ब' याने 'सब', 'धम्म' याने 'धर्म', 'अक्खर' याने 'अक्षर', 'पापस्स' याने 'पाप का', 'दुग्गति' याने 'दुर्गति' वगैरे वगैरे. इस प्रकार पाली भाषा भारतीय भाषाओं के कितने करीब है समजा जा सकता है. पाली भाषा का व्याकरण भी सभी भाषाओं के लोगों में लिए आसान है. लेकिन संज्ञा या विशेषण वाचक शब्दों का अर्थ अलग है, जैसे 'पंडित' याने ब्राह्मण ना होकर 'विद्वान' होता है, 'भगवान्' याने 'काल्पनिक शक्ति' ना होकर 'तृष्णा को नष्ट करने वाला' होता है, 'अजा' याने 'बकरी', 'चेटक' याने 'दास', 'खेळ' याने 'थूक' आदि आदि. लेकिन इन अतिसामान्य अंतर के लिए पाली भाषा को चमत्कारिक स्वरुप घोषित करना या 'दैवी' स्वरुप देने की बेसिर पैर की कसरत यह मंडली कर रही है. इस पर से इस मंडली का उद्देश संशयास्पद जाहिर होता है.

            पाली भाषा कमसे कम बौद्ध लोगों ने निश्चित ही सिखनी चाहिए यह आग्रह योग्य और आवश्यक है, लेकिन जो पाली नहीं सिखा वह बौद्ध नहीं है, ऐसा कहना अनुचित है.  फिर भी यह हेकड़ी पाली सिखाने वाले क्यों ठेल रहे है इसकी खोज करना जरूरी है. यह अगले परिच्छेदों से समज आएगा.

            कुछ दिनों पूर्व नवी मुंबई में पाली के क्लासेस शुरू हुए. वहां शिक्षिका ने पाली सिखाते हुए बताया कि, "जब सिद्दार्थ का जन्म हुआ, तब काफी दूर जंगल में बसा असित मुनि सिद्दार्थ का दर्शन लेने कपिलवस्तु में आया. लेकिन सिद्दार्थ सोया होने की वजह से वह निराश होकर जाने लगा, तब सिद्दार्थ ने पालने में ही हलचल की और तेजीसे उचछ्लकर असित मुनि की जटा में जा बैठा." साथ ही यह शिक्षक मंडली विश्व हिन्दू परिषद् के 'बी के मोदी' नामक बदमाश ने तयार की हुयी  'बुद्धा' टीवी सीरियल की भी पुरजोर समर्थन करती है. मजेदार बात तो यह है कि इस पाली वर्ग की एक कट्टर आम्बेडकरी विद्यार्थी ने जब विरोध किया तो अन्य विद्यार्थिओं ने उसे ही विरोध किया. इतना ही नहीं तो उसे कक्षा छोड़कर जाने को कहा. अन्य जगह पर भी ऐसी ही घटनाएँ घटी. कुछ जगहों पर आम्बेडकारी विद्यार्थियों ने विरोध किया तो कुछ जगहों पर वे चुप रहे.

            यह शिक्षक मंडली  बाबासाहेब की 'बुद्ध और उनका धम्म' में आये कुछ चमत्कारी परिच्छेदों के दृष्टांत देते है. जैसे असित मुनि को दूर जंगल में ज्ञात हुआ कि बुद्ध का जन्म हुआ है, कुछ देवता आकाश से फूलों की वर्षा करते है, बुद्ध ने दिव्य दृष्टी से जाना की उनके गुरुओं की मृत्यु हो चुकी है, बुद्ध का पात्र उलटी दिशा में बहता है, ब्रह्मा सहस्पति का उल्लेख, महापरिनिर्वाण के समय बुद्ध अनिरुद्ध को झल्ला कर कहते है कि देवताओं को दर्शन करने दो, बाबासाहेब अंत में पुन: जन्म की इच्छा करते है और बुद्ध के पुन: आने की  इच्छा करना आदि आदि. ये बदमाश शिक्षक यह नहीं समजते की बाबासाहेब ने 'बुद्ध और उनका धम्म' खुद के जीवनकाल में प्रकाशित नहीं किया था. बाबासाहब को वह ग्रंथ एडिट करने का वक्त ही नहीं मिला, यह जानना जरुरी है.

            खैर, बुद्ध के बाल्यावस्था का उपरी  चमत्कारी वृतांत मेरे अल्प वाचन में अभी तक नहीं आया और उसी प्रकार सुनने में भी नहीं आया है. पाली सिखाने वाली शिक्षिका का वृतांत, बुद्ध चरित्र के कई वृतान्तो में से यह एक है. इस प्रकरण के संबंध में महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि बौद्ध साहित्य के किसी भाग में यह वृतांत अगर हो भी तो पाली सिखाते समय ऐसे चमत्कारी वृतांत प्रस्तुत करने की क्या आवश्यकता है ?


           

 कुछ समय पहले मुंबई में पाली सीखे लोगों ने अपने अनुभव बताये कि पाली विभाग के शिक्षक बाबासाहेब का घोर विरोध करते थे. वह शिक्षक विभाग में बाबासाहब का फोटो भी लगाने से विरोध करते थे. बाबासाहब के अनुयायीयों ने वह फोटो मुंबई विद्यापीठ में रात्रि में लगाकर, वहां से फोटो ना निकाला जाये इसके लिए क्या क्या उठापटक की थी  इसकी रोमांचक कथा उस समय के विद्यार्थी ही बताएँगें. भारत में बौद्ध धर्म पुनर्जागृत करनेवाले, या भारतीओं को पुन: बुद्ध की याद दिलाने वाले बाबासाहब के फोटो का विरोध किया जाता है और फिर उस बौद्ध धम्म के गीत गाते हुए पाली भाषा सीखो की रट लगायी जाती है और फिर यही शिक्षक पाली सिखाते समय चमत्कारी या ब्राहमनीकृत बुद्ध उद्ध्रत करते है, इसका क्या रहस्य हो सकता है इसकी टोह  लेना आवश्यक है. यहाँ यह भी निर्देश करना जरुरी है कि ये शिक्षक यह भी कहते पाए गए कि बाबासाहब ने 'अभिधम्मपिटक' पढ़ा ही नहीं. (क्योंकि बाबासाहब ने यह कहा है कि 'अभिधम्म पिटक' सर्वाधिक विध्वंसक है).

            आज बौद्ध समाज ब्राहमणों की बदमाशी पहचानने लगा है. यह समाज बाबासाहब ने दिए २२ प्रतिज्ञाओं का महत्व समजकर उनको जीवन में उतारने की शुरुवात कर चुका है. इस बौद्ध समाज को पुन: संभ्रमित कर कच्चे बुद्धी के बौद्धों को फिर से अवतारवाद, चमत्कार, पुनर्जन्म इन ब्राह्मणी मायाजाल में ढकेलने के लिए पाली भाषा सिखने का लालच दिखाना, यह एक मजबूत उपाय है. क्योंकि पाली में लिखे उद्धरण लोगों को प्रत्यक्ष सबूत प्रतीत होते है. पाली भाषा सिखाने के नाम पर चमत्कारी और ब्राह्मणीकृत बुद्ध प्रस्तुत किया  जाये तो लोगों को पुन: अन्धविश्वास की खाई में धकेलकर ब्राह्मणवाद थोपने का क्रूर हेतु स्पष्ट होता है. क्योंकि एक जगह पर किसीने ज्यादा विरोध करने पर ये शिक्षक उस गुट में सावधानी पूर्वक सिखाते है, लेकिन उसीसमय दूसरे जगह के गुट में वे चमत्कार सिखाना बंद नहीं करते. अर्थात किसी ना किसी मार्ग से उन्हें ब्राह्मणवाद लादना है यह स्पष्ट होता है. इस प्रयोग में वे सफल भी होते दिखाई देते है. इन पाली कक्षाओं का परिणाम यह हुआ है कि कुछ प्रौढ़ विद्यार्थी खुद को अर्हत पद पर पहुंचे हुए जताते है. वे धम्म मूवमेंट से परे जाकर अकेले हो गए है और ध्यान साधना में लीन हो चुके है. और कुछ विद्यार्थी धम्म मूवमेंट को दोष देने लगे है.


          

  ये शिक्षक चमत्कारी अर्थात ब्राह्मणी बुद्ध थोपते तो है, लेकिन उससे भी ऊपर मुंबई के कुछ बौद्ध लोग इन शिक्षकों की भरेमुंह स्तुति करते है या पाली शिक्षकों का विरोध सहन नहीं करते. इसका कारण यह है कि मुंबई में बड़ी संख्या में महाराष्ट्र के एक विशिष्ट पट्टे के बौद्ध लोग रहते है. ये लोग आज भी मन से हिन्दू होकर बुद्ध को चम्त्कारी स्वरुप में ही स्वीकार करते है. बाबासाहब के बाल्यकाल के क्षेत्र में ही विज्ञानवादी या सत्य आम्बेडकारी विचारों का प्रचार नहीं हो सका है. इसकारण मुंबई में चमत्कारी बुद्ध का या अवतारी बुद्ध का प्रसार दिखाई देता है. और उस वजह से पुणे से पढ़कर आये हुए (या घुसाए हुए) ऐसे पाली शिक्षकों अथवा पाली शिक्षण कक्षाओं की चलती होती है. कुछ पाली शिक्षण संस्थायें और बौद्ध अनुयायी ताइवान / कोरिया से मुफ्त वितरण के लिए उपलब्ध पुस्तकों के प्रसारक भी है. इन पुस्तकों में पुनर्जन्म और चमत्कारी बुद्ध का उत्पात मचाया गया है. मेरे जेहन में सवाल खड़ा होता है कि ये विदेशी संस्थाये आज तक हमसे क्यों नहीं मिलती है? या प्राचीन बौद्ध लेनी स्तूप बचाने का अभियान चलाने वाले लोगों की मदत क्यों नहीं करती? वह इसलिए कि ये विदेशी संस्थाए भारत के ब्राह्मणी लोगों द्वारा चलाई जाती है. ये ब्राह्मणी लोग जापान, चाइना, थाईलैंड, श्रीलंका सभी जगहों पर जाकर बौद्ध इतिहास, साहित्य और गतिविधियों को ब्रह्मनिकृत करने का काम करते है. प्राचीन काल में भी बुद्धघोष नाम के ब्राह्मण ने (५वी सदी) श्रीलंका में जाकर सिंहली त्रिपिटक का अनुवाद कर एक 'विसुद्धिमग्ग' नामका ग्रंथ भी पाली भाषा में लिखा था. यह ग्रंथ पूरी तरह से ध्यान साधना पर और उससे अलौकिक शक्ति/सिद्धि प्राप्त करने पर आधारित है. उसीप्रकार बुद्ध का जीवन चरित्र लिखने वाला भी 'अश्वघोष' नामक ब्राह्मण था. भगवान् बुद्ध ने खुद के जीवन चरित्र को कभी महत्व नहीं दिया और वही विचारधारा संत कबीर, महात्मा फुले और डॉ बाबासाहब आम्बेडकर की भी थी. भगवान बुद्ध ने कहा था मेरे बाद धम्म ही तुम्हारा सास्ता है और बाबासाहब ने कहा कि मेरे कार्य ही तुम्हारे लिए मार्गदर्शक है. इसलिए इन बुद्ध अनुयायियों ने भी कभी उनका जीवन चरित्र लिखने काम नहीं किया. वह काम ब्राह्मणों ने किया. बाबासाहब का जीवन चरित्र धनञ्जय कीर ने लिखा.

            बौद्धों ने यह ध्यान में लेना जरुरी है कि 'सुत्तपिटक', 'विनयपिटक' और 'अभिधम्मपिटक' ये तिन 'ती-पिटक' कुल मिलाकर ३१ पुस्तकों का संग्रह है. 'सुत्तपिटक' के 'दीघनिकाय', 'संयुक्तनिकाय', 'अंगुत्तरनिकाय', 'मझिमनिकाय' और 'खुद्दकनिकाय' ऐसे ५ भाग है. ये संकलन और संपादन बुद्धघोष द्वारा किया गया. 'धम्मपद' यह 'खुद्दकनिकाय' की २री 'पुस्तक' है और 'जातककथा' १०वी पुस्तक है. 'जातककथा' बुद्ध के पूर्व जन्म में विविध प्राणी इत्यादि के बारे में है, जिसका बहुतांश भाग संस्कृत में होकर १५-१६ सदी तक लिखा गया था ऐसा उल्लेख मिलता है. कुछ 'थेरवादी' लोग 'जातक' को नहीं मानते. अर्थात 'ती-पिटक' पूरी तरह से स्वीकार योग्य नहीं यह स्पष्ट होता है. 'विनय पिटक' के ५ भाग है और 'अभिधम्मपिटक' के ७ भाग. ब्राह्मण लोग  'धम्मपद' नामक ग्रंथ को छपने में ज्यादा रस लेते है. पुणे की कुछ मंडली ने 'धम्मपद' को आकर्षक पेकिंग और मधुर गीतों के स्वरुप सीडी भी प्रकाशित की है. धम्मपद छापने का कारण केवल इतना है उसमे २६वे वग्ग में (अर्थात २६वे पाठ में) 'ब्राह्मणों की स्तुति और परिभाषा' की गई है. किसी भी बौद्ध साहित्य के वाचक के तुरंत ध्यान में आएगा कि यह भाग विशिष्ट रूप से तयार कर 'धम्मपद' नामके ग्रंथ में शामिल किया गया है. वाचकों ने इस बिंदु पर ध्यान देना जरुरी है कि बुद्ध के महापरिनिर्वान के बाद 'आनद' और 'उपाली' इन्होने बुद्ध प्रवचन विषद किये थे, जिस पर से क्रमश 'सुत्तपिटक' एवं 'विनयपिटक' तयार किये गए थे, ऐसा उल्लेखित है.

            फिर भी उपरोक्त आंशिक विवेचन से ध्यान में आएगा कि 'ती-पिटकों' में बड़े पैमाने पर मिलावट और घुसपैठ की गयी है. क्योंकि यह सवाल खड़ा होता है कि जब उपाली और आनद बुद्ध वचन विषद कर रहे थे तब उन्होंने क्या ऐसा विषद किया था ? कि , "मै अब सुत्तपिटक का पहिला ग्रंथ, दीघनिकाय बता रहा हूँ, .... और उसका पहिला वग्ग फलां फलां है  ..........................   और अब मै धम्म पद बता रहा हूँ .............. उसका फलां फलां वग्ग ................  ?"  ................  यह ध्यान में लेना होगा कि वे सभी भाग बाद के काल में तयार किये गए थे और वह करते समय बड़े पैमाने पर ब्राह्मणी मिलावट की गई. आज तिपिटक भारत ही नहीं तो सारी दुनिया में उपलब्ध है. वे अशोक ने श्रीलंका में भेजे हुए ही भाग है. मूल तिपिटक भारत में उपलब्ध नहीं है. कुछ भंते और पाली के ये लोग दलील देते है की बाबासाहब ६वी विश्व धम्म संगीति को उपस्थित थे, जिसमे ती-पिटक प्रस्तुत किये गए थे और अगर उनमें दोष होता तो बाबासाहब ने उसका विरोघ किया होता. इस वक्तव्य पर यह सवाल खड़ा होता है कि २००० सालों के बाद धम्म संगीति क्यों ? बाबासाहब के काल में ही क्यों ? असंग, दिग्ग्नाग या हर्षवर्धन के काल में क्यों नहीं ? अथवा लार्ड कन्निग्हम या पाली लिपि की खोज करने वाले जेम्स प्रिन्सेप के काल में क्यों नहीं ? इसका जवाब यह है कि ब्रह्मदेश में घुसे ब्राह्मणों को बाबासाहब के द्वारा ती-पिटकों पर मोहर लगवा लेनी थी और बाबासाहब ने अगर बुद्ध धम्म के मूल ग्रंथों को ही विरोध किया होता तो समाज में बौद्ध धम्म के बारे में संभ्रमावस्था निर्माण हो गई होती. फिर भी बाबासाहब ने कुछ चिन्ह छोड़ रखे है, जिससे आने वाली पीढ़ी इस धम्म को चिकित्सक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मार्गक्रमण करेगी. उन्होंने १५ अक्तूबर को सुबह नागपुर की धम्म परिषद् में स्पष्ट रूप से जाहिर किया था कि उन्होंने भारतियों को दिया हुआ या पुनर्जीवित किया बुद्ध धम्म यह 'हीनयान, महायान, सहजयान आदि किसी भी यान का अथवा देश का अनुयायी नही है. उन्हें अंकित करना था की उनका धम्म अस्तित्व में होने वाले विचारों को अमान्य करता है. बाबासाहब ने 'बुद्ध और उनका धम्म' की प्रस्तावना में स्पष्ट रूप से लिख रखा है कि, "निकाय के वृतांत में  बुद्ध जीवन एक सा मिलता नहीं है और उससे बढ़कर बुद्ध के प्रवचन की असमानता है". अर्थात निकाय के वृतांतों पर बाबासाहब ने प्रश्न चिन्ह खड़ा किया है. इतना ही नहीं तो 'पुनर्जन्म' के पाठ में बाबासाहब ने स्पष्ट रूप से लिख दिया है कि बौद्ध साहित्य में वर्णित बुद्ध वचन सत्य प्रतीत नहीं होते.




















            इसतरह से  इन पाली शिक्षकों का हेतु स्पष्ट हो जाने की वजह से उन्हें समजाने में वक्त जाया ना करते हुते बौद्ध जनता को बड़े पैमाने पर जागृत करने के लिए यह लेख लिखा गया है. अपने बौद्ध वृत्त पत्रों में छापने के लिए संपादकों को विनती की जाती है. उनका पूर्व आभार.
           
पण्डितो नागार्य सिरी परमो आनंदो
(डॉ परम आनंद)
राष्ट्रीय संयोजक, ब्लिस

८८०५४६०९९९

8 comments:

  1. बहुत ही अच्छी जानकारी है। मान्यवर
    ब्राह्मणो की घुसपैठ की वजह से बहुजन मूलनिवासियों के गौरवमयी इतिहास को सामने नही देता।

    आप जैसे लोगो के प्रयास से ही बहुजन मूलनिवासियों के असली गौरवमयी इतिहास को दुनिया के सामने लाया जा सकता है।
    जय भीम जय मूलनिवासी जय भारत जय संविधान

    ReplyDelete
  2. बहुत सुंदर व ज्ञानमयी जानकारी द्वारा बहुजन समाज को सजग किया गया है।
    नमो बुद्धाय

    ReplyDelete
  3. इसका मतलब ये हुआ कि महात्मा बुद्ध जी पहले आए और ब्राह्मण बाद में।
    सही है ना
    Rajesh Kumar Arya

    ReplyDelete
    Replies
    1. महात्मा या भगवान बुद्ध

      Delete
  4. बहुत अच्छे तरीके से चूतिया बनाया जाता है बौद्ध धर्म में, बिना किसी मेहनत के वैज्ञानिक बनते है| जो कभी हो उसे ब्राह्मण के सर पर मढ़ा दो और अच्छी चीजें चोरी कर लो| पूरी दुनिया मानती है कि संस्कृत विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है और सभी भाषाओं की जननी है और आप ने संस्कृत को पाली भाषा से निकला हुआ बता दिया|

    ReplyDelete
    Replies
    1. नकली धर्म वाले आज मानसिक अपंग स्थिति में क्यों मर रहे हैं, अपने झूठ की मानसिक अपंगता से ही।जेटली सुषमा पर्रिकर सड़ातन की शुरुआत है, संस्कृत का प्राचीन प्रमाण है नहीं मानसिक अपंग के पास पर पर क्या करे झूठ बोल कर अपनी मानसिक अपंगता तो दिखानीही है दिखाता रह

      Delete
    2. क्या कोई अमर है जो सुषमा जेटली या पार्रिकर नही मरेगे चल ये बता कि कौन नही मरता चुतियापनती है तेरे मार्ग दर्शकों की जो बुद्ध की बात करते है मगर बुद्ध की नही मनाते है

      Delete